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दम्भी सरकार की हठधर्मी पर चोट

शब्दस्वर
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अन्ना हजारे का अनशन 12 दिन चलने के बाद अन्ततः सफल हो गया है । आखिर सरकार को जनशक्ति के आगे समर्पण कर अपनी हठधर्मिता को छोड़ना पड़ा जिससे समाधान का मार्ग प्रशस्त हुआ । भ्रष्टाचार को लेकर पूरा देश अन्ना हजारे के समर्थन में सड़क पर उतर आया था । आजादी के बाद से ही देश में भ्रष्टाचार ने जिस गति से अपना विस्तार किया है उससे देश में लोकतंत्र के भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगता नजर आ रहा है । लोकतंत्र पर भ्रष्टाचार की काली छाया पड़ चुकी है जिसके उदाहरण के रुप में केंद्र की यूपीए तथा कई राज्यों की सरकारें हमारे सामने हैं । इसी भ्रष्ट व्यवस्था ने अन्य बुराइयों को अपनाकर समाज को जाति, धर्म तथा समुदायों में बांटा जिससे वोट बैंक की राजनीति ने जन्म लेकर लोकतंत्र की दिशा ही बदल दी । इसके कारण अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति समाज में और नीचे तक फैलती गई , समाज बंटता चला गया । किसी भी तरह सत्ता प्राप्त करना ही राजनीतिज्ञोँ का एकमात्र उद्देश्य बन गया है । सोनिया कांग्रेस की मनमोहन सरकार कभी एक कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे की घातक नीति पर चलते हुए कदमताल कर रही है । पूरे मामले में लापरवाह प्रधानमँत्री अँग्रेजी भाषा में अन्ना हजारे से अनशन समाप्त करने की अपील करते हैँ । उनसे एक कदम आगे चलकर अपनी चुप्पी तोड़कर राहुल ने तो यह कहकर मामला ही समाप्त कर दिया कि लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त ही नहीं हो सकता । राहुल गाँधी ने अन्ना के इस आंदोलन को लोकतंत्र के लिए खतरा बताकर अपनी परिवादी सोच को जाहिर कर दिया है । ये राजनीतिज्ञ इतने गंभीर विषय पर अपने देशवासियों से जिस तरह बात और व्यवहार करते हैं यह भी एक शर्म का विषय है । कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी पहले अन्ना पर उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाते हैं , फिर बाद में माफी माँगकर अनशन तोड़ने की अपील करते हैं । दिग्विजय सिंह तथा कपिल सिब्बल के तो कहने ही क्या ? जन लोकपाल को लेकर अन्ना और उनकी पूरी टीम ने पूरी परिपक्वता और सूझबूझ का परिचय दिया है जबकी केंद्र सरकार और उसके कर्ताधर्ताओं का रवैया बेहद गैर जिम्मेदाराना तथा निराशाजनक रहा है । सत्ता हथियाने के बाद ये कितने निरंकुश , दमनकारी तथा गैर जिम्मेदार हो सकते हैं इसका उदाहरण केंद्र की यूपीए सरकार के रुप में सबने देख लिया है। आज भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनता की आवाज को दबाया जा रहा है । जब कभी भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनाने का अवसर आता है तो अपने आपको उससे बाहर रखने की बात करते हैँ । लेकिन अन्ना के इस आंदोलन ने सरकार में बैठे इन नेताओं को आईना दिखा दिया है । सँसद ने अन्ना की तीनों मुख्य शर्तेँ मान ली है । आखिर सरकार को अपना नापाक हठ छोड़ा और प्रधानमंत्री ने इसे ‘ जनता की इच्छा ही संसद की इच्छा ‘ बताकर अपनी सरकार को संकट से बचा लिया । उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके बाद जो भी कानून जनलोकपाल के अंतर्गत बनेगा उससे भ्रष्टाचार मेँ कमी आएगी । अन्ना के अनुसार यह आधी जीत है , जिससे यह संघर्ष आगे भी जारी रहेगा । देशवासियोँ को यह जागरुकता आगे भी लगातार बनाए रखनी होगी , क्योँकि सरकार के पिछले रिकार्ड को देखते हुए उसकी विश्वसनियता अभी भी संदेह के घेरे में है । जननायक अन्ना हजारे के साथ साथ उनकी समर्पित , सुयोग्य , कार्यकुशल और पूरी तरह पूरा समय सक्रिय टीम के कुशल प्रबंधन में यह आंदोलन चला और सफल हुआ । आगे भी जनता को सरकार के निर्णयोँ के बारे में जागृत रहना होगा जिससे हमारा लोकतंत्र सुरक्षित रह सके ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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