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पालिथीन पर प्रतिबंध

शब्दस्वर
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Photo1229(1) सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस बात पर विचार करेगा कि पर्यावरण और मवेशियोँ के हितोँ को ध्यान मेँ रखते हुए प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए या नहीँ । एक जनहित याचिका मेँ न्यायालय का ध्यान पशुओँ की दशा की ओर आकर्षित किया गया जो अपने भोजन के साथ प्लास्टिक भी निगल रहे हैं । इस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्लास्टिक थैला बनाने वाली कंपनीयोँ तथा केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है ।
सरकार और कंपनियाँ इस मामले मेँ क्या रुख अपनाती है यह तो बाद मेँ ही पता चलेगा जब वे अपना जवाब दाखिल करेंगे । लेकिन वास्तविकता यही है कि इस प्रकार के मामलोँ मेँ समाधान कानून व नियमोँ तक ही सिमटकर रह जाते है । कंपनियोँ को पैसा कमाना है तथा राजनेताओँ को राजनेताओं को चुनाव जीतने के लिए पैसा चाहिए । आज के युग में प्लास्टिक हर क्षेत्र का अनिवार्य अंग बन गया है । घर मेँ उपयोग होने वाली साधारण वस्तुओँ, बर्तन , फर्नीचर , खिलौने से लेकर आटोमोबाईल , उद्योग तथा कृषि सहित लगभग सभी क्षेत्रोँ मेँ प्लास्टिक पर निर्भरता बढ़ती ही जा रही है ।
आज बहुत कम लोग घर से थैला लेकर खरीददारी करने निकलते हैं । सभी प्रकार की वस्तुएँ कैरीबैग में आवश्यकतानुसार मात्रा व पैकिँग में उपलब्ध हैं । बिस्किट , चिप्स , ठंडे पेय , मिनरल वाटर , करियाना , मनियारी , कपड़ा तथा रेडिमेड वस्त्र आदि सभी कुछ प्लास्टिक की गिरफ्त मेँ हैं । इसके बिना आज जीवनचर्या थम सी जाएगी ।
आज हम उपभोक्तावाद के शिकार बन गये है । अल्प समय में अमीर बनने की ख्वाहिश मेँ पूरी ऊर्जा पैसा कमाने मेँ ही लग रही है । देश , समाज , परिवार , प्रकृति , पर्यावरण तथा साफ सफाई के प्रति किसी का ध्यान नहीँ हैँ । नैतिकता व चरित्र बेमानी हो गये है । छोटे कर्मचारियोँ से लेकर राजनेताओँ तक करोड़ोँ के घोटालेबाज हैँ । नैतिकता और चरित्र की तो व्यक्तिगत मामला बताकर पैरवी की जाती हैं । जिन्हेँ आदर्श स्थापित करने चाहिए थे वे महाघोटलोँ मेँ तिहाड़ जेल की हवा खा रहे हैं । समाज में प्रतिदिन नई नई समस्याएं पैदा होती है । लेकिन देश का नेतृत्व कर रही सरकार के पास दृढ़ इच्छाशक्ति तथा देश के लिए कुछ करने की चाह का भारी अभाव है ।
पूरी ताकत सरकार बचाने तथा घोटालोँ पर लीपापोती करने मेँ लगी है । न्यायालय की सक्रियता से कभी कुछ अच्छे जनहित के कार्य हो जाते हैं ।
प्लास्टिक के विषय मेँ कुछ प्रदेशोँ मेँ कानून भी बने हैँ । हिमाचल में पालिथीन की थैलियोँ पर प्रतिबंध है । लेकिन दूसरे राज्योँ से पालिथीन की पैकिंग मेँ माल आ रहा है । सुंदर दृश्यावलियोँ पर पालिथीन का कहर जारी है । इस विषय पर जब तक केंद्र सरकार द्वारा कोई कानून नहीँ बनेगा तब तक समस्या जस की तस बनी रहेगी ।

नियम तथा कानून राष्ट्रहित व जनता के हित मेँ हो तथा उनकी अनुपालना भी सुनिश्चित हो यह आवश्यक है ।
सब से बड़ी बात इस विषय में हमारा समाज भी अभी तक जागरुक नहीँ हो पाया है । अपने घर को तो साफ रखते है लेकिन सारा कूड़ा कचरा बाहर सड़क या गलियोँ के किनारे फैंक देते हैं । जिसे आवारा जानवर भोजन की तलाश में और ज्यादा फैला देते हैँ ।
आज विकास की अंधी दौड़ मेँ हमारा देश कचरा और प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योग मेँ परिवर्तित होता जा रहा है । डिस्पोजल सामग्री के उपयोग के कारण तो कचरे के ढेर बढ़ते ही जा रहे हैं । प्लास्टिक व पालिथीन पैकिँग सामग्री के उद्योग खूब फल फूल रहे हैं । सरकारेँ तथा स्थानीय निकाय कचरे की छंटाई करके इसे ठिकाने लगाने में सफल नहीँ हो पाए हैं । कचरे का सही प्रबन्धन तथा तथा रिसाईक्लिंग की उचित व्यवस्था पंचायत स्तर तक होनी चाहिए ।
अतः इस समस्या के समाधान हेतु कड़े कानूनोँ तथा दण्ड के प्रावधानोँ के साथ साथ सभी के जागरुक होने की आवश्यकता है तभी हम अपेक्षित परिणाम हासिल कर सकते हैं ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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