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कौन करेगा देश की रक्षा….?

शब्दस्वर
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आज भारत की राजनीति चौराहे पर खड़ी है । राजनेता देश को जी भर लूट लेना चाहते हैं । एक दूसरे के धुर विरोधी यूपीए में एकजुट हैँ । माया, ममता, करूणानिधी, मुलायम, अजीतसिंह और शरदपवार जैसै लोग अपनी मनमानी करके केंद्र सरकार को जब तब उसकी औकात दिखाते रहते है । सोनिया के राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी प्रणव को समर्थन की भी इन्होँने पूरी कीमत वसूल कर ली है । भ्रष्टाचार से अपना बचाव करने तथा अपनी उल्टी सीधी मांगे मनवाने के लिए वे अपने समर्थन की पूरी कीमत ब्याज सहित वसूल रहे हैं । तमाशबीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोनिया की कठपुतली बनकर सत्ता का सुख लूट रहे हैं । देखादेखी मेँ उनकी अपनी पार्टी के मंत्री भी क्योँ पीछे रहते उन्होँने भी देश की जनता का कचूमर निकालने मेँ कोई कसर नहीँ छोड़ी ।
आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद देश का लोकतंत्र और राजनीति बद से बदतर होती चली आ रही है । अंग्रेजोँ की गुलामी की मानसिकता लिए कांग्रेस तथा उनके सहयोगी वामपंथी मिलकर धर्मनिरपेक्षता व मुस्लिम तुष्टिकरण का राग अलापकर देश को हानि पंहुचाते रहे ।
उनके एकछत्र राज को चुनौती देने के लिये देश मेँ कोई भी राजनैतिक शक्ति अभी तक उभर नहीँ पाई है ।
हिन्दुत्व के विचार पर आधारित भारत के सर्वांगीण विकास की अवधारणा को लेकर डा. हेडगेवार जी ने 1925 मेँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी । इससे भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को आधार मिला और संघकार्य वटवृक्ष का रुप धारण करने लगा । असंगठित और गुलामी की मार से त्रस्त हिन्दू समाज में एक नई उर्जा का संचार हुआ ।
आखिर 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और कांग्रेस ने खंडित भारत का शासन संभाला । नेहरू के नेतृत्व मेँ अंग्रेजी मानसिकता का राज कायम हुआ जो आज तक जारी है । आजाद भारत की व्यवस्था मेँ भी अल्पसंख्यकोँ का तुष्टी करण जारी है और हिन्दू समाज अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर है ।
आज 2012 मेँ भारतीय जनता पार्टी की बात करेँ तो लगता है कि देश भगवान भरोसे है । इसके नेता अपने मूल सिद्धांतो तथा विचारधारा से भटक कर कुर्सी के भूखे हो गए हैं । यह अन्य दलोँ के भ्रष्ट तथा असफल नेताओँ की सैरगाह बन गई है । छोटे क्षेत्रीय दलोँ के रहमोकरम पर सत्ता मेँ बने रहना तथा अपने ही भ्रष्ट नेताओँ के आगे मजबूर हो जाना इसकी नियति बन गई है । एनडीए के कारण तो इसने अपनी पहचान ही खो दी है । राम मन्दिर, धारा 370, समान नागरिक संहिता, स्वदेशी तथा अन्य विषय भुला दिए गये हैँ । अनुशासन, निष्ठा और नैतिकता बीते जमाने की बातें हैं । पार्टी तोड़ने और गद्दारी करने वाले मंत्री बने बैठे हैं तथा दशकोँ से जनाधार वाले नेता निष्ठावान विधायक के विधायक ही हैं । विचार परिवार के अन्य संगठन भी भाजपा मेँ घुसपैठ करने के लिए आधार प्रदान करते है । टिकट न मिलने पर पलायन कर जाते हैं । बाद मेँ फिर लौट आते है ।
वर्तमान में भाजपा संगठन की बुरी हालत है । अनेकोँ ऐसे चेहरे महत्वपूर्ण पदोँ पर विराजमान है जिन्हेँ नैतिकता और संगठन का पाठ पढ़ाते देख आश्चर्य होता है । लगता है संघ नेतृत्व भी अनिर्णय की स्थिति में है ।
देश खतरे मेँ है । नेतृत्व का संकट है । अभी भी समय है संभलने का , कहीँ देर न हो जाए ।

– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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