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मैं चुप रहुँगा क्योँकि मैँ सोनिया की कठपुतली हुँ । विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारतवर्ष की कठपुतली । आप कहेंगे इसमेँ खास क्या है …? यहाँ तो मेलोँ, त्योहारोँ तथा अन्य अवसरोँ पर भी कठपुतलियोँ द्वारा लोगोँ का मनोरंजन किया जाता है । आपने बड़े बड़े कठपुतलियोँ के प्रोग्राम देखे होंगेँ । लेकिन जिन्दा कठपुतली का शो ….! कृपया दाँतोँ तले उंगली दबाएं, जरा ध्यान से , कहीँ चबाकर घायल न कर देँ । कोई भी बड़ा अर्थशास्त्री जब कठपुतली का रोल अदा करता है तो देश का बेड़ा गर्क होना ही होता है । इस किरदार को निभाने के लिए मैँ न जाने कितनी ही बार मरा हुँगा मुझे याद नहीँ । हर बार पुनः पुनः जीवित होता रहा । अब तो दोनोँ मेँ कोई फर्क ही नजर नहीँ आता ।
आपने सब कुछ देखा होगा लेकिन अब किसी कठपुतली को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हुए देखिए ।
एक खास बात और कि इसके बाकी के मंत्री अपनी मर्जी से नौटँकी करके शो के आईटम्स मेँ ईजाफा कर रहे है क्योँकि वे पपेट नहीँ हैँ । अनेकोँ तो बड़े बड़े लुटेरोँ और घोटालेबाजोँ की नौटकी कर चुके हैं..! वह भी सरेआम बड़े ठाट और पूरी होशोहवार से । एक कलमाड़ी ने तो खेल खेल मेँ ही देश के सैँकड़ोँ करोड़ रुपयोँ पर ही हाथ साफ कर दिया ।
मैं कठपुतली प्रधानमंत्री चुप रहा , आप पूछेंगे क्योँ ? क्योँकि….! अरे भाई, मेरी डोर किसी और मैडम के हाथ में होती है और इसे सारा देश जानता है । कठपुतली तो मुंह भी अपनी मर्जी से नहीँ खोल सकती । वह जो कुछ बोलती है, शब्द किसी और के ही होते है । लेकिन छोड़ो भी…., मुझे तो अधिकतर चुप ही रहना होता है । मेरी पार्टी के बहुत से महानुभाव जो सरकार के भीतर तथा बाहर बैठे हैँ भ्रष्ट अफसरशाही के साथ मिलकर अरबोँ रुपये के घोटाले कर गए फिर भी मैँ जानबूझकर चुप रहा, क्योँकि मैँ कठपुतली जो ठहरा ।
अब तो कोयले की दलाली मेँ भी देश को पौने दो लाख करोड़ का चूना लगा दिया । हम यूपीए वालोँ का तो सब कुछ ही काला है , बस बाहर से झक सफेद का आवरण है । तिहाड़ तो हमारा तीर्थ है ।
….अरे इतना बोल गया (कान पकड़ते हुए) दीवारोँ के भी कान होते हैँ । माफ करना भाई, गलती हो गई ….। बाप रे..! तुम तो मरवा दोगे । खैर, आत्मा तो पहले ही मर चुकी है , क्या फर्क पड़ता है ।
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