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भारत का आहत गणतँत्र (कविता)

शब्दस्वर
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वर्तमान मेँ हमारा भारत देश उन्हीँ लोगोँ के प्रहारोँ से आहत है जिन पर इसको पगति पथ पर आगे बढ़ाने का दायित्व है । गृहमँत्री शिंदे के देशद्रोही बयानोँ ने देश का जितना अपमान और नुकसान किया है उतना तो अफजल तथा कसाब जैसे आतँकियोँ ने भी नहीँ किया है । इसने तो आतंकवाद के विरूद्ध देश की धार को कमजोर करने की धृष्ठता की है तथा हमारी सांस्कृतिक गरिमा को ठेस पंहुचाई है। इसी संदर्भ मेँ प्रस्तुत है यह रचना।
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भारत का आहत गणतँत्र
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आँसू बहा रहा है देखो, भारत का गणतँत्र।
गृहमंत्री तक जप रहे, देशद्रोह का मँत्र।
देशद्रोह का मँत्र, भ्रष्ट है कुनबा इनका।
लुटा रहे हैं देखो, देश का तिनका तिनका।
जागो भारत जागो, ये हैं रक्त पिपासू।
नहीँ तो रहो बहाते, निशिदिन खून के आँसू ।
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राष्ट्रभक्ति का कर रहे, रह रह कर अपमान ।
सिर ले जाए काट कर, चाहे पाकिस्तान।
चाहे पाकिस्तान, शर्म इनको नहीँ आती।
भ्रष्टाचार की गंध, इनको खूब सुहाती।
घोटालोँ में लगी है, इनकी सारी शक्ति।
लेशमात्र भी नहीँ है, इनमेँ राष्ट्रभक्ति।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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