शब्दस्वर
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नेता खेलें होली
*
आरोपोँ की कीचड़ से,
नेता खेलेँ होली।
भाईचारे में नफरत की ,
स्याही घोली।
एक दूसरे के मुखड़े पर,
कालिख मलते।
जब अपने को लगती,
सिर पकड़ेँ और रोते।
बात यही है सत्य,
ये नेता न सुधरेंगे।
बेशर्मी की ओछी,
होली ही खेलेंगे।
*
कचरे के डब्बे ने पहने,
ज्योँ खादी के वस्त्र।
और हाथ में लिए फिर रहे,
राजनीति के शस्त्र।
राजनीति के अस्त्र,
त्रस्त जनता बेचारी।
मार रही इन पर,
आरोपोँ की पिचकारी।
बात यही है सत्य,
चलेँ बदरंगी चालेँ।
सुधर नहीँ सकते,
ये मोटी चमड़ी वाले।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
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