शब्दस्वर
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*मकर संक्रांति*
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सूर्यदेव के प्रखर तेज का,
पावन पर्व मकर संक्रांति।
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सही दिशा में परिवर्तन का,
देता यह सन्देश युगों से।
यतो धर्मः ततो जयः की,
दैवीय ओजमयी ऊर्जा से।
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स्वर्णिम तेज और पुण्यों की,
जन जीवन को होती प्राप्ति।
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भीष्म पितामह थे रण स्थल में,
अर्जुन के बाणों से लथपथ,
निज मृत्यु को रोक प्रतीक्षा,
की थी मकर संक्रांति तक।
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इच्छामृत्यु से प्राणों को,
इसी समय तज पाई सद्गति।
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इसी समय सुरसरि गंगा जी,
भागीरथ के पीछे चलकर।
सागर में विलीन हुई थी,
कपिल मुनि के आश्रम होकर।
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नदियोँ की रक्षा करने हित,
कर्म मार्ग पर बढ़ें नित्यप्रति।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
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