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सर्द ऋतु ने पैर पसारे ।
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पास पास मिल बैठें साथी
सर्द ऋतु ने पैर पसारे ।
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जीवन की गति मंद पड़ गई,
फिर भी मन भागा ही जाए ।
उठापटक की दुनियादारी,
खुशिओं को बिखराती जाएं ।
बहुत हो गई जग की बातेँ,
थोड़ा अपना घर भी सँवारें ।
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पास पास मिल बैठें साथी,
सर्द ऋतु ने पाँव पसारे ।
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सघन धुँध की चादर ओढ़े
धरती भी अब दुबकी जाए ।
पर्वत घाटी वृक्ष लताएं,
आँखोँ से ओझल हो जाएं ।
फिर भी जीवन गति मेँ रहता,
रुकती नहीँ कभी पतवारेँ ।
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पास पास मिल बैठें साथी,
सर्द ऋतु ने पैर पसारे ।
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प्राची से सूरज की किरणेँ,
भू तल पर जब फैली जाएं ।
अंधेरी रातोँ की ठण्डक ,
से जीवन कुछ राहत पाएं ।
छोड़ घोंसला पाखी भी अब,
दूर गगन की ओर निहारेँ ।
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पास पास मिल बैठें साथी
सर्द ऋतु ने पैर पसारे ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य,
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