शब्दस्वर
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*जिस मोड़ पर*
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वो हमें जिस मोड़ पर मिलते रहे हैं,
घाव दिल के फिर हरे करते रहे हैं।
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फासले ही जब हकीकत बन गये हैं,
तब हवा में पुल सदा ढहते रहे हैं।
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है बहुत छोटी मगर ये जिंदगानी,
हौंसले तो रोज ही बढ़ते रहे हैं।
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पंख हैं फौलाद के जिन पंछियों के,
वो समंदर पार ही करते रहे हैं।
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आसमां से टूटते हैं जो सितारे,
प्रेमियों को वो सदा भाते रहे हैं।
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बीज जो मिट्टी तले ही सो गये थे,
पेड़ बनकर वो सदा फलते रहे हैं।
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प्यास वे बादल बुझा सकते नहीं हैं,
जो गरजकर ही सदा उड़ते रहे हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
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