शब्दस्वर
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*देश का गणतंत्र*
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देश का गणतंत्र आहें भर रहा क्यों देखिये।
विश्वभर में यह पिछड़ता जा रहा क्यों देखिये।
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भूलते ही जा रहे सब देश अपना आजकल।
खून जनता आम का अब भी बहा क्यों देखिये।
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घाव भरने है जिसे उसकी नियत मेँ खोट है।
खून ही उसका यहां पानी हुआ क्यों देखिये।
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नित नई मांगें लिये जो दे रहा धरना यहां।
फर्ज अपना भूलता ही जा रहा क्यों देखिये।
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देश की खातिर मिटे कुर्बान सीमा पर हुए।
महल उनके ख्वाब का अब फिर ढहा क्योँ देखिये।
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पूर्व आजादी सहे माँ भारती ने घाव हैं।
आज फिर से जुल्म धरती ने सहा क्यों देखिये।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
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