शब्दस्वर
- 85 Posts
- 344 Comments
रंग बिखराते रहे
——————-
पर्व होली के सुहाने रंग बिखराते रहे।
कल तलक जो दूर थे वो पास भी आते रहे।
——————-
रंग पंखो पर सजाये उड़ रही हैं तितलियां।
रूप मदमाता दिखाकर
खूब भरमाते रहे।
——————-
खो गये सब खूब फाल्गुन की फिजा में देखिये।
मस्त होकर टोलियों में नाचते गाते रहे ।
——————-
चाहतें अब पंख फैलाये उड़ाने भर रही।
जिन्दगी के रंग मुखड़ों पर उतर भाते रहे।
——————-
साथ जुल्फों के उड़ी रंगीन भीगी चुनरिया।
रंग पूरे तन बदन पर खूब बह जाते रहे।
——————-
——————-
-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
Read Comments