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रंग बिखराते रहे

शब्दस्वर
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holimadhubani2

रंग बिखराते रहे
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पर्व होली के सुहाने रंग बिखराते रहे।
कल तलक जो दूर थे वो पास भी आते रहे।
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रंग पंखो पर सजाये उड़ रही हैं तितलियां।
रूप मदमाता दिखाकर
खूब भरमाते रहे।
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खो गये सब खूब फाल्गुन की फिजा में देखिये।
मस्त होकर टोलियों में नाचते गाते रहे ।
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चाहतें अब पंख फैलाये उड़ाने भर रही।
जिन्दगी के रंग मुखड़ों पर उतर भाते रहे।
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साथ जुल्फों के उड़ी रंगीन भीगी चुनरिया।
रंग पूरे तन बदन पर खूब बह जाते रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।

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