शब्दस्वर
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(कुण्ड़लिया छंद)
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चंचल तितली ले उड़ी, फूलों से मकरंद।
और मचलती शान से, बगिया बीच स्वछंद।
बगिया बीच स्वछंद, फूल अनगिन हैं खिलते।
साथ आ गए भ्रमर, मधुर मधु गुंजन करते।
श्वेत ओस की बूंद, धूप खिलनेपर पिघली
मगर बहुत है व्यस्त, देखिए चंचल तितली।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
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